...

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अहसास
एक प्रतिक्रियात्मक कविता..

याद नहीं कब किस दिन
उसके बाग से खिले जुड़े में
मैंने गुलाब सुर्ख रोपा था,

उसे याद है तो जरूर
सपने में ही सही
उसे रेशमी अहसास ने
यादों में भिगोया होगा,

वही पहली मुलाकात थी
शायद जान यह
उसने गुलाब पर लगाया होगा,

शोख अंदाज़ की सिहरन से
तन पूरे मन से
कौंध गया होगा,

सब कुछ उसने ही दिया था
गुलाब को गुलाब की तरह,
यादों में हमेशा लिपटा कर
पुस्तक में बसा लिया होगा,

पलकों में भीतर
फिर कभी आएगा
यह ख्वाब जब,
भीग जायेगा फिर
तन भीतर ही भीतर,

दरिया की लहरों के बीच
एक नया गहन
अहसास लिए...

सुरेन सुकुमार
सुरेन्द्र बंसल