...

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" ऐ फ़रिश्ते "
" ऐ फ़रिश्ते "

जब चारों ओर फैली हुई थी अंधियारे की घटाएँ..
मेरी नाव फंसी थी किसी उद्दंड नदिया के बीच मझधार के भंवर में..
ऊलझनों के चौराहे पर खुद को उलझा हुआ पाया..

किस ओर कदम बढ़ाएं हमें कुछ समझ में न आया..?
फ़िक्र की चादर तान अंधेरी रात में मेरा दिल बेइंतहा घबराया..
टूटी आस मेरी दूर तलक भटकती तन्हाई में..
एक दिन रोशनी की लौ लिए कोई फ़रिश्ता मुझ से कुछ ऐसे टकराया..
देख उन्हें मेरा दिल बहुत...