दुनियादारी
लौ भरी जेठ दोपहारी में
जिनको लहराते देखा है,
सावन की सरल फुहारों में,
पत्ते मुररझाते देखा है।
गिरिजाघर में, गुरुद्वारों में,
घंटाघर की टंकारो में,
फिर मंदिर की झंकारों में,
बस नियति देखने वालों को,
चप्पल सरकाते देखा है।
लौ भरी......
मिट्टी से ईंट पकाने तक ,
ईंटो से महल बनाने तक,
महलों में फिर बस जाने तक,
हर शय से गुजरने वालों को,
कई मकां ढहाते देखा है।
लौ भरी......
बूँद -बूँद बरसातों से ,
भरते गढ्ढों की सुरुआतो से,
फिर नदिओं की औक़ातो से,
खुद को जो सागर बना लिया,
उसको बल खाते देखा है।
लौ भरी......
झुठलाती सी, इठलाती सी,
कुछ सहज भाव में गाती सी,
छुप छुप कर अश्क बहती सी,
दिल में सबके रहने वाली को
घर से जाते देखा है।
लौ भरी जेठ दोपहारी में
जिनको लहराते देखा है,
सावन की सरल फुहारों में,
पत्ते मुररझाते देखा है।
जिनको लहराते देखा है,
सावन की सरल फुहारों में,
पत्ते मुररझाते देखा है।
गिरिजाघर में, गुरुद्वारों में,
घंटाघर की टंकारो में,
फिर मंदिर की झंकारों में,
बस नियति देखने वालों को,
चप्पल सरकाते देखा है।
लौ भरी......
मिट्टी से ईंट पकाने तक ,
ईंटो से महल बनाने तक,
महलों में फिर बस जाने तक,
हर शय से गुजरने वालों को,
कई मकां ढहाते देखा है।
लौ भरी......
बूँद -बूँद बरसातों से ,
भरते गढ्ढों की सुरुआतो से,
फिर नदिओं की औक़ातो से,
खुद को जो सागर बना लिया,
उसको बल खाते देखा है।
लौ भरी......
झुठलाती सी, इठलाती सी,
कुछ सहज भाव में गाती सी,
छुप छुप कर अश्क बहती सी,
दिल में सबके रहने वाली को
घर से जाते देखा है।
लौ भरी जेठ दोपहारी में
जिनको लहराते देखा है,
सावन की सरल फुहारों में,
पत्ते मुररझाते देखा है।