समझने लगे है
हा ख्वाहिशों के पेमाने अब बदलने लगे है
ज़ब से हुए बड़े बहुत कुछ समझने लगे है
बिना कुछ पसंद किए लौट आते हैं बाज़ार से
अब तो फूल कागज़ के भी हो तो महकने लगे है
बचपन से सोचते थे बड़े होंगे तो खरीद ही लेंगे
लगता है...
ज़ब से हुए बड़े बहुत कुछ समझने लगे है
बिना कुछ पसंद किए लौट आते हैं बाज़ार से
अब तो फूल कागज़ के भी हो तो महकने लगे है
बचपन से सोचते थे बड़े होंगे तो खरीद ही लेंगे
लगता है...