...

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मिरात।
यह क्या सितम हैं,के उदासी अब मुझे उम्रभर सताएगी!
वह शख्सियत नहीं आएगी,यानी अब उसकी याद आएगी।

ढूंढ़ो उस मुफ़लिस को, के सज़ा फरमानी हैं मुझे उसे,
मैं रुका रहा धूप में यह सुनकर के आज बरसात आएगी।

कमाल हैं तुम भी हो मेरे जैसे सुबह की रोशनी से डरते हो,
अरे आराम फ़रमाओ ज़नाब चंद लम्हों में रात आएगी।

मैं कितनी भी कर लूं कोशिश तुमसे बिछड़ने कि जाना,
मगर तुम्हारे पहलू से छुड़ाने अब सिर्फ वह मौत आएगी।

एक ही तो रही मेरी ख़्वाइश उम्रभर,एक ही रहा मलाल,
कभी तो तेरी नज़रों में मेरी सूरत – ए – मिरात आएगी।

मैं रुका रहा कईं ज़िंदगियां तेरे घर के दहलीज की सीढ़ी सा,
के कभी तो मेरे अंजुरी में तेरे मुहब्बत की खैरात आएगी।

© वि.र.तारकर.