...

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अनकहा इश्क
अनकहा सा इश्क मेरा,
मैं भी अधूरा होने लगा हूं।
पहले भी खोया खोया रहता था,
अब खुद से ही दूर रहने लगा हूं।।

खुद से नफरत नहीं है मुझे,
बस अधूरी ख्वाहिशें खोने लगा हूं।
अब तो दोस्तों के साथ होकर भी,
खुद में अकेला होने लगा हूं।।

जाने क्या हुआ है मुझे,
जागते हुए भी सोने लगा हूं।
पहले किसी और का था,
अब किसी और का होने लगा हूं।।

चेहरे पर नहीं आने देता कोई गम मैं,
अंदर ही अंदर दबाने लगा हूं।
कुछ तो ख्वाहिशें बची हैं,
जो मैं खुद को ही साबित करने लगा हूं।।

बेवजह की परेशानियां देख ली,
अब खुद की उलझनों में उलझने लगा हूं।
रोज-रोज धीरे-धीरे मैं,
खुद को ही खुद से समझने लगा हूं।।



© R raghav