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#लगता है कि वृक्ष बोलते
हरी-भरी धरा पर,
ठिठोली करते झूमते,
प्रकृति का आलिंगन करते,
लगता है कि वृक्ष बोलते ।
हवा की मानिंद घूमते,
पक्षियों संग कलरव करते,
शाखाओं से फल गिरा,
वन में अमृत घोलते।
मेघों की घटाओं को,
परत दर परत खोलते,
शुष्क हुई जमीन पर,
बूंद गिर कर बोलते ।
गरज कर चमक कर,
अपनी उपस्थिति देते,
छल छल करती नदी को,
जीवंत करते ठेलते।
प्रकृति का आधार ये,
वृक्ष गर फलते फूलते,
जीव जंतु इस धरा पर,
निर्विघ्न हो कर घूमते।
#जुगनू
ठिठोली करते झूमते,
प्रकृति का आलिंगन करते,
लगता है कि वृक्ष बोलते ।
हवा की मानिंद घूमते,
पक्षियों संग कलरव करते,
शाखाओं से फल गिरा,
वन में अमृत घोलते।
मेघों की घटाओं को,
परत दर परत खोलते,
शुष्क हुई जमीन पर,
बूंद गिर कर बोलते ।
गरज कर चमक कर,
अपनी उपस्थिति देते,
छल छल करती नदी को,
जीवंत करते ठेलते।
प्रकृति का आधार ये,
वृक्ष गर फलते फूलते,
जीव जंतु इस धरा पर,
निर्विघ्न हो कर घूमते।
#जुगनू
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