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वैराग्य मन वैराग्य तन...
वैराग्य मन वैराग्य तन,
घुमत फिरू वन उपवन।
हर पगडंडी कहत कहानी अपनी,
व्यक्त करती व्यथा और जवानी अपनी।
दिखावे संसार के खेल अजब,
सभी हैं एक विडम्बना बड़ा गजब।
जीवन के नट खेल रुदन में हैं सब फसतें,
सत्य आखिर क्या है यह सब हैं जानते।
जीवन में कुछ भी स्थिर नहीं
फिर भी लालसा में इसे सत्य मानते।
अजब गजब ये द्वंद्व युद्ध हैं,
जहां हर रणजीत पराजीत है जानता,
मरघट ही परम सत्य पर कोई ना मानता।

मन वैराग्य था तन वैराग्य बन,
जाना मैंने ये सत्य है सुंदर जैसे कुंदन।
अब ना कलेश किसी से ना ग्लानी हैं मन में,
वैराग्य मैं बढ़ चला उस सत्य के उपवन में,

वैराग्य मन वैराग्य तन,
घुमत फिरू वन उपवन।।

#anirwanchandradutta
#by_devils_pen


© Trance Rudra