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"...स्याह से काले रात"
रात के स्याह अंधेरे में जब मैं बिल्कुल अकेला होता हूँ,
तब तुम मुझ तक आती हो जब, मैं बहुत अकेला होता हूँ!
सांसो की सरगोशियों संग तुम भी हर पल जीती हो।।
तब तब तुम आ जाती हो,जब मैं बहुत अकेला होता हूँ!!

अपने सपने को तुम उनींदी में तब तब तोड़े जाती हो,
सारे रिश्ते नातों की गलियां एक पल में छोड़े जाती हो,
डरती हो तुम फिर क्यूँ, सब से सहमी सी क्यो हो जाती हो?
जीवन की वास्तविकता में तुम मुझ तक थोड़े ही आती हो!

अपनी दुनियां अलग हुई, अब संसार हमारा जुदा हुआ,
रस्मो और और रिवाज़ों में अब कोई और तुम्हारा खुदा हुआ,
फिर भी जब जब तुम्हें देखा तो तुम्हारा सर भी होता है झुका हुआ,
मेरी तरह अपने को क्या तुम भी खुद में पाती हो?
तुम तब तब ही क्यूँ आ जाती हो,
जब मैं बहुत अकेला होता हूँ?

एक दिन की सुरमई सुबह थी, तुम सज धज कर यूँ गुज़र गई,
मेरे जेहन के ज़र्रे ज़र्रे में तुम खुशबू बन कर के बिखर गई।
मेहंदी की वो महक न थी,वो तुम्हारी मोहब्ब्त की एक कस्तूरी थी।
मन्दिर में देवी को पूजने की वो विधि भी तो बस दस्तूरी थी।
एक दिन भी ऐसा गया नही जब हम तुम दोनों मिले नही,
इतनी थी वफ़ा तुम में की आज भी तुमसे कोई शिक़वे गीले नही।।
वो वक़्त भी कितना ज़ालिम था जो हम दोनों से रुठ गया,
सारी उमर का वो सपना देखो न एक पल में टूट गया,

अब तो  मैं हूँ  तुम हो बस स्याह से काले रातों में,
अब कोई न हमको सोचता है किस्से, कहानियों और बातों में,
हमारे होंठो की मुस्कान अब पिछले जन्म की बात हुई
जब चांद को हम तुम तकते थे वैसी भी सुनहरी रात गई
नन्हा सा एक फूल तुमसे ही फिर खिल गया
जीवन को जीने का तुमको वजह   फिर मिल गया
उसमे ही तो अब तुमको एक अक्स नज़र आ जाता है
माँ माँ जब वो तुमको बुलाता है दिल मे प्यार  उमड़ सा जाता है
सारी दुनियां तुमसे अलग हुई बस एक सितारा चमक गया
बेटू जिसे तुम कहती हो उस राजे का मुखड़ा दमक गया
अब न  मैं हूँ न तुम हो और न सारी दुनियां की दीवारें हैं
ठाकुरबाड़ी के पूराने खंडहर अब न हमे पुकारे है

प्रेम गया  वो जिद गया और लौट के भी वो प्रीत गया
सबको ऐसा लगता है कि अहंकार ही उनका जीत गया
पर हम दोनों के सीने में जो सदियों से ही धड़का है
जब भी इनको चोट लगी बस एक दूजे के लिए ही तड़पा है
करना क्या है इनको भी अब सिवाए धड़कते जाने के
हम दोनों को ही तो मिला है तोहफा
सारी उमर तड़पते जाने के

हां पर रात के स्याह अंधेरे में जब मैं बिल्कुल अकेला होता हूँ
तब तब तुम आ जाती हो जब मैं बहुत तड़पता रहता हूँ
तब तुम ही मुझ तक आती हो,जब मैं बहुत अकेला होता हूँ 
प्यार की हमारी वो चिता नफरत के आग में भस्म हुई
स्याह से काले पलों में ही सुबह शाम और रात खत्म हुई !!!