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जो मुझे नज़र आता है वो तुम्हें नज़र आता क्यों नहीं

जो मुझे नज़र आता है वो तुम्हें नज़र आता क्यों नहीं
ये कैसा वहम है मेरा आख़िर मैं तुम्हें भाता क्यों नहीं

चाहतों की बौछार किए जा रहे हैं इस जुनून-ए-इश्क़ में
इक हमारा दिल इस अहसास में तुम्हें भिगाता क्यों नहीं

मैं अपना हाल-ए-दिल लिए अक्सर तेरे रू-ब-रू होता हूं
तेरे दिल में क्या चल रहा है, ये तू मुझे सुनाता क्यों नहीं

तुझे लगता है बिछड़ना मुक़द्दर है तो दूर रहना सही है
गर तुझे ये डर लाहक़ है तो बता मुझे डराता क्यों नहीं

ज़बरदस्ती के रिश्ते अक्सर बीच राह ही दम तोड़ देते हैं
ऐसा तुम्हें लगता है गर तो हाथ मुझसे छुड़ाता क्यों नहीं

मैं ख़ुद को भीड़ में शुमार नहीं किया करता हूँ "जानाँ"
गर मैं भी दूसरों जैसा लगता हूं तो मुझे बताता क्यों नहीं

भरी बज़्म में अक्सर मैं ख़ामोशी की चादर ओढ़ लेता हूं
क्या..! ख़ामोशी पढ़ लेते हो तुम तो मुझे सुनाता क्यों नहीं

मैं तेरा इंतज़ार करता हूं, तुझे सोचता हूं, ख़्याल करता हूं
तू भी मुझे पढ़ता है क्या, बता_! मुझे गुनगुनाता क्यों नहीं

अक्सर कहा करते हैं लोग, एक जैसे सात हुआ करते हैं
एक भी मिला है क्या तुम्हें, बता__! मुझे गिनाता क्यों नहीं

तुमने मीर पढ़ा, क्या पढ़ा है तुमने ग़ालिब तो समझो सको
इश्क़ करते हो तो इज़हार करो_! दिल में बसाते क्यों नहीं

जो मुझे नज़र आता है वो तुम्हें नज़र आता क्यों नहीं
ये कैसा वहम है मेरा आख़िर मैं तुम्हें भाता क्यों नहीं
© Zulqar-Nain Haider Ali Khan


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