...

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आगाज़
मैफिलो जरा ठहरो अभी तो आगाज़ है
आना अभी बाकी मेरा नया अंदाज़ है...

युँ तो आसमाँ पर बहुत है काबिल परिंदे
शान-ए-फलक बाकी अभी शहबाज है...

आधा अधुरा सच बज्मो मे गुंज रहा है
खुलना अभी बाकी जमाने बहुत राज़ है...

सजी है नज़्मे लफ़्जो की मिनाकारी से
तू ही है मुमताज़ मेरी तू ही तो ताज़ है...

मुकम्मल ना सही मशहुर लफ्जो से हुँ मै
मुझ को मेरी अधुरी मुहब्बत पर नाज़ है...

© संदीप देशमुख