...

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मुखर मौन
रात के बिखरे सन्नाटे बीनती हूं..

अंदर के सन्नाटों की आवृत्ति से
मिल जाए शायद,
अनुनाद सुनाई दे!

कोई आवाज़
तुम तक पहुंच सके

गूंजे कभी तो
इस मन का मौन...



© आद्या