...

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एकाकीपन
थमी पवन और ठहरे बादल
स्थिर लहरें कैसा विरान,
खोकर खुद को, खोकर जीवन को
खोता है सारा अभिमान,
फैले अनंत शून्य से झांकता
भावहीन मेरा एकाकीपन।

उलझा किस किस में, सुलझा नहीं
छोड़ दिया यूं बंधा हुआ
बनता बनता सब बिगड़ गया
क्या बचा था सधा हुआ,
हार थक कर क्या हुआ
बचा मेरा एकाकीपन।

राहों में जीवित कोई था नहीं
पत्थर तो फिर पत्थर थे,
तपते थे वो तपता था मैं
चेतन मैं था पर वो जड़ थे,
छलके केवल मेरे आंसू
महसूस हुआ एकाकीपन।

आशाओं के पर फैलाए
ठहरी पवन पर ठहर ना पाए
दिशाहीन होकर गगन में
जाने किस गंतव्य को जाए
अनभिज्ञ रस हीन यात्रा में,
विचरता मेरा एकाकीपन।

मन पर कोई गांठ नहीं
अनंत विचार की धारा है,
जिसपर कुछ वक्त ठहर सके
विचार खोया आवारा है,
बवंडर में भी महसूस करे
चित्त मेरा एकाकीपन।

खेल सदा ही चलता है
खेले तो दिल बहलता है,
यूंही सबको उलझाता है
जो देखे संभलता है,
सब कारनामों की बात करें
देखकर मैं ये कारनामें,
देख रहा एकाकीपन।
© Robbie