...

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कहीं कुछ भी नहीं बदला
कहीं कुछ भी नहीं बदला, सिर्फ रातें गुजर गईं,
ख्वाबों की दुनिया में, सब कुछ वैसा ही पा गईं।

दिन भर की भागदौड़ में, खो गई वो मुस्कान,
कुछ भी नहीं बदला, पर दिल का ज़ख्म निकल आया ज़बान।

यादें बिछी हुई हैं जैसे एक पुरानी किताब,
कुछ भी नहीं बदला, बस एहसास है ख़राब।

मोहब्बत की राहों में, खो गई वो खुशियाँ,
कुछ भी नहीं बदला, पर दिल की धड़कनें बढ़ गईं।

ज़िन्दगी के सफर में, धूप छाँव का संगम,
कुछ भी नहीं बदला, सिर्फ ख्वाब हैं विश्वासम।

बस इतना है मेरा कहना, कुछ भी नहीं बदला,
पर अहसासों की गहराई में, नया सफर बसा है बसा।
© Simrans