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बोध
तेरे लब पर जो ख़ामोशी है उसे टूट कर बिख़र जाने दो 
जो क़ैद है दर्द कहीं तेरे अंदर उसे आँखों से बरस जाने दो

जो साँसों में बसी उम्मीद है ज़िंदगी की उसे मुस्कान बन खिलखिलाने दो 
धोखे ने शक़ के दायरे में रहने को बेहद मजबूर किया अब ज़रा विश्वास को ख़ुद में समाने दो
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