...

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कुछ शेष नहीं लौटाने को
कुछ शेष नहीं
तुझे लौटाने को
बस राख बची है
दरिया में बहाने को,
समंदर भी कहीं कम
ना पड़ जाए
बिखेरे हुए मोती
उसमें छिपाने को,
साहस की टोकरी
कहीं टूट ना जाए
मंजिल को मंजूरी की
एहसास दिलाने को,
दर्पण का अक्स कहीं
भ्रमित ना हो जाए
सच्चाई से मिथ्या को
विरक्त कराने को,
कैसी है मेरी मनोदशा
हिम्मत नहीं तुझे बताने को
समझाए फिरती हूँ खुद को
तुझसे दूर बस जाने को।


© Annu Rani💦