कहाँ सहज है पुरुष होना ( अतुकांत कविता )
अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस की शुभकामनाओं सहित 💐
पुरुष भी स्त्री की भाँति विधाता की बनाई वो रचना ,जिसे कई बार समझना कठिन होता है। बस एक प्रयास ✍️
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कहाँ सहज है ?
पुरुष का पुरुष होना.....
आहत हो हृदय फिर भी
पलकें न भिगोना......
कौंधता है यह सवाल,
कई बार मेरे मन को,
क्या सचमुच पुरुष नहीं रोते ?
या फिर शुरू से ही उनको पहना दिया,
जाता है तमगा साहसी होने का,
या फिर वो होते हैं पाषाण हृदय के ?
नहीं,......शायद वो रोते...
पुरुष भी स्त्री की भाँति विधाता की बनाई वो रचना ,जिसे कई बार समझना कठिन होता है। बस एक प्रयास ✍️
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कहाँ सहज है ?
पुरुष का पुरुष होना.....
आहत हो हृदय फिर भी
पलकें न भिगोना......
कौंधता है यह सवाल,
कई बार मेरे मन को,
क्या सचमुच पुरुष नहीं रोते ?
या फिर शुरू से ही उनको पहना दिया,
जाता है तमगा साहसी होने का,
या फिर वो होते हैं पाषाण हृदय के ?
नहीं,......शायद वो रोते...