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कहाँ सहज है पुरुष होना ( अतुकांत कविता )
अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस की शुभकामनाओं सहित 💐

पुरुष भी स्त्री की भाँति विधाता की बनाई वो रचना ,जिसे कई बार समझना कठिन होता है। बस एक प्रयास ✍️

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कहाँ सहज है ?
पुरुष का पुरुष होना.....
आहत हो हृदय फिर भी
पलकें न भिगोना......

कौंधता है यह सवाल,
कई बार मेरे मन को,
क्या सचमुच पुरुष नहीं रोते ?
या फिर शुरू से ही उनको पहना दिया,
जाता है तमगा साहसी होने का,
या फिर वो होते हैं पाषाण हृदय के ?

नहीं,......शायद वो रोते हैं
बहुत रोते है,बस छलकते नहीं आँसू
जो करा सके उनके रुदन की पहचान

कई बार देखा है मैंने एक पिता को
बेटी की विदाई पर फफककर रोते हुए,
कभी अचानक बाप का साया उठ जाए
तो भीतर ही भीतर टूटकर रोते हुए,
कभी सुनती हूँ बंद कमरे से सिसकियाँ
कभी रुलाई को हँसी के पीछे छिपते हुए....
क्योंकि वो जानता है कि वो उस स्तंभ की भाँति है
जिसे हर परिस्थिति में डटकर खड़े रहना है,
सदा करना है सबल नियति से संघर्षण
एक भाव से पीना है सुख-दुख के भाव ,
ढोना है अपने सिर पर गुरु भार ,
क्योंकि वो पुरुष है इस गर्व के साथ..
सच, कहाँ सहज है पुरुष होना...... !!!!

®© प्रिया ओमर
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