दास्ता
दास्ता ये अजीब है।
दुःख की गहराइयों में
सोई कस्ती भी अजीब है।
खोजे उजाले को,
नजाने कैसी ये कशीश है।
रोई आंखे, टूटे एहसास...
फिरभी मंज़िल ये हसीन है।
गिरा के भी जोड़े मुझे,
इसकी सीख...
दुःख की गहराइयों में
सोई कस्ती भी अजीब है।
खोजे उजाले को,
नजाने कैसी ये कशीश है।
रोई आंखे, टूटे एहसास...
फिरभी मंज़िल ये हसीन है।
गिरा के भी जोड़े मुझे,
इसकी सीख...