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मैं भी गीत लिखा करता हूँ।

मैं भी गीत लिखा करता हूँ,
नदियां और किनारों के।
मैं भी गीत लिखा करता हूँ,
मन के टूटे तारों के।

वो मन जिसको जोड़ लिया अब,
जनम-जनम तेरे मन से ।
प्यासा रहा है हर पल करके,
साझेदारी सावन से।

स्वप्न सुनहरे देखे तुम संग,
फूलों और बहारों के।
मैं भी गीत लिखा करता हूँ,
मन के टूटे तारों के।

जब भी मन को तनहाई ने,
किया अकेला जीवन में।
तेरी यादें, तेरी बातें
साथ रहीं हर धड़कन में।

मुस्कानों में भी हैं चर्चे
तेरे प्रेम इशारों के।
मैं भी गीत लिखा करता हूँ,
मन के टूटे तारों के।

तुम नदियां की धारा पावन,
बाहें मेरी किनारे हैं।
सुरसरि सरिस प्रेम पावन है,
चंदा संग हम तारे हैं।

जीवन की ‌नौका ले जाती,
दोनों ओर किनारों के।
मैं भी गीत लिखा करता हूँ,
मन के टूटे तारों के।

दुल्हन कोई जब श्रृंगारित,
नयनों से गोचर होती।
तेरा आनन मुस्काता है,
तम को फिर मिलती ज्योति।

नींद सुहानी, सपने अनगिन
डोली और कहारों के।
मैं भी गीत लिखा करता हूँ,
मन के टूटे तारों के।

© 💕ss