...

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मन की लिखने वाले कवि तुम....
मन की लिखने वाले कवि तुम
अब तो 'मन के मन'की लिख दो तुम...
मन को जब कुछ मन का मिलता,
मन जाने क्यों शरमा जाता।
जब मनमीत न मन की सुनता,
मन 'मन ही मन' घबरा जाता।
मन मे कुसुमित भाव-कुसुम सब,
कविता मन उपवन की लिख दो
मन की लिखने वाले कवि तुम,
अब तो 'मन के मन' की लिख दो।
मन सोचा करता है मन में,
दुनिया क्या जाने मेरा मन?
मन से मन जुड़ने से पहले,
जग का मन देखे है क्यों तन?
तन की खुशबू बहुत हुई अब,
खुशबू अंतर्मन की लिख दो।
मन की लिखने वाले कवि तुम,
अब तो 'मन के मन' की लिख दो।
देखो! तुम कुछ ऐसा लिखना,
मन का कहीं न 'मन' दुख जाये।
'मन का मन' आहत होने से,
जीवन का सारा सुख जाये।
मन को महका देने वाले,
अब इस चन्दन वन की लिख दो।
मन की लिखने वाले कवि तुम,
अब तो 'मन के मन' की लिख दो।