...

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आवाज दी,,,
जी रहे थे अंधरो में की तभी तुमने आवाज दी,,,
आवाज ऐसी दी की बस गई रूह तक,,,
सब भूल जाती थी जब जब वो पुकारता मुझे
आवाज उसने सुर ताल में पिरोई थी
उसका हर सुर मुझे अपनी ओर बुलाता रहा
ऐसा लगता मानो मेरी जीवन की कहानी हो वो
उसने मुझे जीने की नई सौगात दी,,,,
जी रहे थे अंधेरों में की तभी तुमने आवाज दी,,,,,,
छोड़ चुकी उसकी दुनिया में मन किया वापसी का
चली आयी में अब कुछ नयापन लेकर
वो सुनाता था में सुनती रही ,, उसे खबर भी नहीं
एक दिन जबाब दे दिया मैने उसकी आवाज का
वो भी लगा मुझे मेरी ही राह देख रहा हो
अपना बना लिया मन को मेरे उसने
सुकून मिलने लगा अब बहुत जीवन में
पिछे की कड़वी दास्तां मैने भुला दी,,,
जी रहे थे अंधेरों में की तभी तुमने आवाज दी,,,
उसने बोला तुम हो मेरा जीवन क्या में हू तुम्हारा
परन्तु कोई जवाब ना था उसकी इजहार ए महोबत्त का,,,,,, चुप होकर सुनती रही उसकी आवाज
आत्मा तक खाली उसके लिए मैने करदी,,,,,,
जी रहे थे अंधेरों में तभी तुमने आवाज दी,,,,,