...

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श्रृंगार...
श्रृंगार...
चंद अल्फ़ाज़ लिखना आसान है शायद !
कहने को तो यह स्त्री का अलंकार है,
और यही खिंची गयी
कुछ रिवायतों की लकीर है शायद !

मुमकिन है तोड़ना ...
हाँ, मुमकिन है तोड़ना ...
परम्पराओं के नाम पर झूठी रस्मों को !

लेकिन, ललाट पर टीका ...याद दिलाये
साँसों से जुड़ी उन सारी कसमों को !
चमकती नथ अश्कों को पी जाती है,
और हर हाल जैसे हँसना...