...

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नंगा नाच ही जारी है
इंसान दिखावे में, अंधा हो गया,
दिखता उसको, कोई धर्म नहीं

जो कुकृत्य हो रहा, समाज में
कह सकते, उसको सत्कर्म नहीं

हर तरफ बस झूठ, मक्कारी है
बस वर्चस्व की दुनियादारी है

न बचा राम सा पुरुष कोई,
न हि, मां सीता सी कोई नारी है

नजर उठाकर, जिधर भी देखो
बस, नंगा नाच ही जारी है

© Vineet