...

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आगज ए इश्क़
आंखों को तुम मेरे न कहो कि देखे तुम्हे
नजरों में हो तुम तो नजारों को क्या देखूं

सागर सी गहरी तुम ,
तो झील को किनारों से क्या देखूँ

आकाश सी ऊंची हो तुम
तो छोटी सी मीनारों को क्या देखूँ

तेरे घर का रास्ता है मालूम मुझे
ये सनम तेरे हाथों के इशारों को देखूं

तेरी इक मुरझाये चेहरे का है आभास मुझे
तो तीर के दर्द से लथपथ वारों को क्या देखूँ

मैं खूद में हूँ तेरा इक तलबगार
इतिहास के पन्नो में दर्ज कब्र ये मोहब्बत

शाहजहाँ के लगाए मीनारों में ताज को क्या देखूँ।


© 𝓴𝓾𝓵𝓭𝓮𝓮𝓹 𝓡𝓪𝓽𝓱𝓸𝓻𝓮