#धुल
शुर धुल से घुले मिले हैं
तभी तो रण में डटे पड़े हैं;
हुंकारों से शत्रु घीघ बने पड़े है
मृत्युंजय योद्धा काल से पार खड़े हैं
महाकाल स्वयं है, ह्रदय है हिमालय सा
रण यज्ञ है पवित्र रणक्षेत्र है देवालय सा
जूझते है अरि पर कर रहे है दीन याचना
अशुभ होता है आदि, रण भी तो पावन साधना
@ कैलाश© All Rights Reserved