...

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काका रमई और काकी
काका रमई चलेन गुस्सा मा,
कहेन न छोड़ब बुढ़िया का।
आज बन के बादर हम फाटब,
चढ़ी है जउन खोपड़िया मा।

काकी देत रहिन चारा बरधा का,
काका पहुंचेन शान से।
लै के लाठी, खोंस अंगउछा,
बोलेन मोछा तान के।

कूदि– कूदि गुस्सा मा काका,
पीड़ा आपन काहत रहेन।
जान रही शरीरी मा नै,
बेचारू अबे तक सब सहत रहेन।

काकी ठाढ़े थामे रस्सा,
सुनत रहिन सब सुनत रहिन ।
पकरिन फिर काका के गटई,
मोहना से ...