...

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मंजिल
क्या हुआ कुहासा छाया है
क्या हुआ धुआं सा आया है
है पथ अदृश्य तो क्या हुआ
है मंजिल सुदूर तो क्या हुआ।

तुम भी मानव हो बलशाली
धातु को समझो तुम पुआली
यदि जोर शिखर तक का दोगे
तुम आंखों के हर आंसू लोगे।

तुम चकाचौंध में मत खोना
पथ से डंग भी ना डग होना
होना न पथिक बिलकुल दुर्बल
आगे पथ जगमग है बिल्कुल।

है मंजिल अब चंद कदम आगे
मंजिल होगी निराश यदि अब भागे
है खड़ी मंजिल अब बांह पसारे
जग हंसेगा जो अब हथियार तूने डारे।