"पुरुष"
बचपन जिसका, जिम्मेवारियों के बोझ तले दब जाता हैं,
"मर्द होकर रोता हैं" सुनकर ताने ऐसे, आँसू अपने पी जाता हैं,
बचपन की खुशियों का हिस्सा उसका, बड़े-छोटे में बट जाता हैं,
नाजुक अपने कन्धों पर ही, बोझ परिवार का उठाता हैं,
बचपन से जवानी की दहलीज पर, कदम जब बढ़ाता हैं,
जिम्मेवारियों के बोझ तले, और वो दबता जाता हैं,
जवानी की खुशियों का हिस्सा भी उसका, रिश्तों में...
"मर्द होकर रोता हैं" सुनकर ताने ऐसे, आँसू अपने पी जाता हैं,
बचपन की खुशियों का हिस्सा उसका, बड़े-छोटे में बट जाता हैं,
नाजुक अपने कन्धों पर ही, बोझ परिवार का उठाता हैं,
बचपन से जवानी की दहलीज पर, कदम जब बढ़ाता हैं,
जिम्मेवारियों के बोझ तले, और वो दबता जाता हैं,
जवानी की खुशियों का हिस्सा भी उसका, रिश्तों में...