...

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कुसूर
आंखो की शबनम है, सौदा है घाटे का ।
फूलों से मोहब्बत है,पर्दा है कांटे का ।
अश्कों से करीबी है, खौफ है दर्द का ।
आसमान की ऊंचाई है, ज़ख्म है परिंदे का ।
करीब तो दिल है, फासला है दीवार का ।

पंख तो है उड़ने, डर है ऊंचाई का ।
सुकून का तो पता नहीं, दर्द है तन्हाई का ।
अल्फाज बोले जाते है, मजा है खामोशी का ।
लबों से मुस्कुरा लेते है, जिक्र है उदासी का ।
घाव तो गहरे ही है, कुसूर है बेवफाई का ।



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