...

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कि मेरे गलियारे गुलज़ार तो नहीं ,लेकिन सूखे भी नहीं 
चौबारा खोल रखा हैं पर कोई आता नहीं 
कही कोई अपना मुझसे रूठा तो नहीं 


जिन्दगी भी पत्र भेजकर अक्सर मुझसे यह प्रश्न किया करती हैं 
कही  तेरे गलियारों में कड़ी धूप  का सैलाब तो नहीं 


हम भी पत्र भेजकर उत्तर भेज दिया करते हैं
कि मेरे गलियारे गुलज़ार तो नहीं ,लेकिन सूखे भी नहीं 


फिर भी इसी उम्मीद से हम जिया करते हैं कि 
जब तक रूठो को मना लेंगे नहीं  तब तक चैन से सोएंगे नहीं। 
# आशीष कुमार