![...](https://api.writco.in/assets/images/post/default/story-poem/normal/1.webp)
3 views
वक्त और हम
हम ठहरे रहें या गतिमान,
वक्त छड़ भर का है मेहमान.
पनप जाते कीड़े रुके जल मे,
स्थिर व्यक्ति की कोई नहीं पूछ किसी भी स्थल में.
वक्त ना ठहरा है,ना ठहरेगा,
हम चलें ना चलें पर हमारा वक्त ना बदलेगा.
प्रगति बिना गति के नहीं है संभव,
बस एक कदम बढ़ाने से असंभव भी हो जाएगा संभव.
सीख देती ये कुदरत एक अनुशासन की,
दिन होती-रात होती कर्तव्य पालन की.
भीतर से सोया, सबकुछ खोया,
जब जगा, एक दिव्य रोशनी पाया.
चलो संकल्प लें, हमारे भीतर केवल प्रकाश हो,
क्या धरा और क्या आकाश हो.
© All Rights Reserved
वक्त छड़ भर का है मेहमान.
पनप जाते कीड़े रुके जल मे,
स्थिर व्यक्ति की कोई नहीं पूछ किसी भी स्थल में.
वक्त ना ठहरा है,ना ठहरेगा,
हम चलें ना चलें पर हमारा वक्त ना बदलेगा.
प्रगति बिना गति के नहीं है संभव,
बस एक कदम बढ़ाने से असंभव भी हो जाएगा संभव.
सीख देती ये कुदरत एक अनुशासन की,
दिन होती-रात होती कर्तव्य पालन की.
भीतर से सोया, सबकुछ खोया,
जब जगा, एक दिव्य रोशनी पाया.
चलो संकल्प लें, हमारे भीतर केवल प्रकाश हो,
क्या धरा और क्या आकाश हो.
© All Rights Reserved
Related Stories
2 Likes
0
Comments
2 Likes
0
Comments