...

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बेनाम रिश्ता
बेनाम रिश्ता था, उसका और मेरा
ना दोस्ती थी, ना प्यार था
सिर्फ नजरों का टकराव था ।

वो हँसता था, मैं हँसती थी,
दिनभर का यही काम था ।
ना पढाई थी ,ना कोई लक्ष्य था,
दोस्तों से अलगाव था ।

सपनों के बादल पे तैरना,
बस यही मुझे भाता था ।
और डायरी के पन्ने भरना,
बस यही मुझे आता था ।

फिर एक दिन मेरी आँख खुली,
सपनों की दुनिया से बाहर हुई ।
मैं स्टेशन तो पहुंच गई,
लेकिन ट्रेन पहले ही खुल गई ।

उम्र का दोष कहला कर,
मेरी गलतियाँ छिप गई ।
लेकिन दूसरों की नजरों में,
मैं क्यों इतना गिर गई।

-प्रियम

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