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कैसे कह दूँ
#InternationalMensDay

हिम्मत नहीं है यह कैसे कह दूँ,

किसी का मैं पति किसी का भाई,
तो किसी बाप हूँ।
जीवन रूपी इस संग्राम में सबका,
मैं ही एक आस हूँ।
किस तरह से मैं सबको निराश कर दूँ,
हिम्मत नहीं है यह कैसे कह दूँ,

मैं अक़्सर हर पल यही चिंता करता हूँ,
मेरा पुरुष होना उनका है आसरा।
वे सब निश्चिंत रहते मेरी इस चिंता से,
और मैं भी उनका बनता हूँ सहारा।
किस तरह से मैं सबको बेसहारा कर दूँ,
हिम्मत नहीं है यह कैसे कह दूँ,

स्वंम को मैं समझता हूँ सौभाग्यशाली,
इस संसार में मेरी भी है उपयोगता।
अपने पुरुष होने का मुझे है अभिमान,
यह खुशी है कि मैं भी कुछ अर्थ रखता।
किस तरह से मैं ख़ुदको कायर कह दूँ,
हिम्मत नहीं है यह कैसे कह दूँ,

© अदंभ