...

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तेरा भी कुछ तो ख्वाब है
दिल में जो ठहरा सवाल हरदम
ढूंढ जरा क्या जवाब है
जान तु तेरी मंज़िल यहां
तेरा भी कुछ तो ख्वाब है

लाखों हैं दुश्वारियां सफ़र में
पर गिर जाना यूं ना अच्छा है
तुझमें बसा है इमान पूरा
मुसाफ़िर तु भी सच्चा है

बरस रहीं बूंदें आंखों से
पर तन्हाई में ये मुनासिब है
चलना तुझको हरदम होगा
तेरा भी कुछ तो ख्वाब है

फिसल कर जो वक्त गया है
उसे याद रखना ठीक नहीं
बैठें बैठें मिलें सब मंज़िल
मंज़िल कोई भीख नहीं

तालीम मेरी जान ले तु तो
फलसफा ये दिल में रखना
कशिश दिखेंगी लाखों तुझको
पर फिर भी ना तुझको रूकना

बसा है तुझमें तेरा खुदा हैं
ना ढूंढ उसे तु बाहर यहां
उम्मीद ख़ुद से बेहद रख
इक दिन मिलें ज़फ़र यहां

राहतें सारी ना मिलेगी
इशरत तुझको भूलना होगा
सफ़र तो ऐसा ही हैं होता
चाहो मंज़िल तो चलना होगा

चमकेगा इक दिन तु भी तों
तेरा भी कुछ तो ख्वाब है
जो सवाल तेरे दिल में हैं
तुझमें ही बसा उसका जवाब है

रूह तलक सब रौशन होगा
जब तु समझेगा वजूद अपना
नाज़ करेगा खुद पर तु
जब मुकम्मल पाएगा तेरा सपना
-उत्सव कुलदीप






© utsav kuldeep