...

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विश्वनाथ के नन्दी
काशी गए हो कभी ?
कभी सुनने का प्रयास किया है
विश्वनाथ के मूक नन्दी की?
हाँ वही नन्दी जो प्रतीक्षा में है
हाँ वही नन्दी जिसके सामने
उसके स्वामी नहीं हैं
हाँ वही नन्दी जो विवश है
अपने स्वामी से विमुख बैठने को
क्या उस नन्दी को देख कर
तुम्हारा हृदय द्रवित नहीं होता?
क्या उस नन्दी को देख कर
तुम्हारा मन नहीं रोता?
घण्टों बैठ कर कभी कभी मुझे
न जाने क्यों वही नन्दी याद आता है
विरह की पीड़ा, उस नन्दी की व्यथा का
क्या कोई अंत नहीं है?
क्यों महादेव स्वयं आकर
उसे मुक्त नहीं कर देते?
हे नाथ आओ न उस नन्दी को और मुझे
मुक्त कर दो इस पीड़ा से, इस व्यथा से
हे नाथ मेरे, हे मेरे नाथ!

© Aashutosh Shukla हिरण