मुझे अपना दर्द बताना नहीं आता,
मुझे अपना दर्द बताना नहीं आता,
क्या हूँ मैं, यह समझना नहीं आता।
दिल के ये ताले, जज्बातों से जकड़े हैं,
भावनाओं की भाषा, कोई समझ नहीं पाता।
चाह है मेरी, कह दूं हर एक एहसास,
पर शब्दों का ये जाल, उलझा देता हर बार।
रहस्यों से भरी, मेरी दुनिया की किताब,
समझना इसे, किसी को आता नहीं साकार।
क्या हूँ मैं, इस सवाल से झूझती हूँ हर रोज,
किससे कहूँ अपना दर्द, ये सोचकर ही रुक जाती हूँ।
भीड़ में हर चेहरा, है एक अनजान कहानी,
मेरे दिल की बातें, कोई न जाने मानी।
चुप रहकर भी, कितनी बार चीखी हूँ,
पर वो चीखें भी, सन्नाटे में खो सी जाती हैं।
बस चाहती हूँ कोई, जो बिना कहे समझे,
मेरे भीतर की उलझनों को, हौले से सुलझा दे।
कभी-कभी लगता है, किसी दिन ये मौन भी बोलेगा,
मेरी हर धड़कन, किसी दिल तक पहुंचेगा।
क्या हूँ मैं, ये पहेली भी खुद-ब-खुद सुलझ जाएगी,
और मेरे दर्द की कहानी, किसी को समझ आएगी।
मुझे अपना दर्द बताना नहीं आता,
क्या हूँ मैं, यह समझना नहीं आता।
पर उम्मीद है, किसी दिन कोई समझेगा,
मेरे दिल के कोनों को, अपने दिल से पढ़ेगा।
© राजू
क्या हूँ मैं, यह समझना नहीं आता।
दिल के ये ताले, जज्बातों से जकड़े हैं,
भावनाओं की भाषा, कोई समझ नहीं पाता।
चाह है मेरी, कह दूं हर एक एहसास,
पर शब्दों का ये जाल, उलझा देता हर बार।
रहस्यों से भरी, मेरी दुनिया की किताब,
समझना इसे, किसी को आता नहीं साकार।
क्या हूँ मैं, इस सवाल से झूझती हूँ हर रोज,
किससे कहूँ अपना दर्द, ये सोचकर ही रुक जाती हूँ।
भीड़ में हर चेहरा, है एक अनजान कहानी,
मेरे दिल की बातें, कोई न जाने मानी।
चुप रहकर भी, कितनी बार चीखी हूँ,
पर वो चीखें भी, सन्नाटे में खो सी जाती हैं।
बस चाहती हूँ कोई, जो बिना कहे समझे,
मेरे भीतर की उलझनों को, हौले से सुलझा दे।
कभी-कभी लगता है, किसी दिन ये मौन भी बोलेगा,
मेरी हर धड़कन, किसी दिल तक पहुंचेगा।
क्या हूँ मैं, ये पहेली भी खुद-ब-खुद सुलझ जाएगी,
और मेरे दर्द की कहानी, किसी को समझ आएगी।
मुझे अपना दर्द बताना नहीं आता,
क्या हूँ मैं, यह समझना नहीं आता।
पर उम्मीद है, किसी दिन कोई समझेगा,
मेरे दिल के कोनों को, अपने दिल से पढ़ेगा।
© राजू