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"रिश्ते के आइने चटक रहे हैं ll
हम पत्थर बने भटक रहे हैं ll
सच से परहेज करते हैं,
झूठ को सबुत गटक रहे हैं ll
कहने को हम एक हैं मगर,
एक दूसरे को खटक रहे हैं ll
पैसे को पीठ पर लाद कर,
जिम्मेदारियों को पटक रहे हैं ll
घमंड में इतना फूल चुके हैं कि,
सादगी के रास्ते में अटक रहे हैं ll'
Nishu
हम पत्थर बने भटक रहे हैं ll
सच से परहेज करते हैं,
झूठ को सबुत गटक रहे हैं ll
कहने को हम एक हैं मगर,
एक दूसरे को खटक रहे हैं ll
पैसे को पीठ पर लाद कर,
जिम्मेदारियों को पटक रहे हैं ll
घमंड में इतना फूल चुके हैं कि,
सादगी के रास्ते में अटक रहे हैं ll'
Nishu