...

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हिसाब सिर्फ तुम्हारे कामों का होगा।
गुमान ना करो तुम अपने रुतबे का,
यहां सभी किरदार हैं, जब वक्त पूरा होगा ।तो ना तुम रहोगे, ना ये रूतबा होगा।
हिसाब सिर्फ तुम्हारे कामों का होगा।
क्यों इतना ज़रूरी था उस समाज में तुम्हारा मिल जाना कि देख ना सके तुम इक म़जबूर की मजबूरी को,
क्यों इतना लाचार हुए जो भूल गए हर अच्छाई को, जो तुमने कभी तिनका तिनका करके थी जूटाई।
क्यों याद नहीं आया तुमको वो गुज़रा दौर तुम्हारा था, जब तुमने भी तो, ऐसे ही, हाथों को था फैलाया, तब अगर किसी ने हाथ ना बढ़ाया होता ??? तो क्या तुम ऐसे बन पाते। क्या कभी ये गुमान कर पाते???
© Dr. Urvashi Sharma