...

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सृष्टि की अभिदृष्टि कैसी?
मैं तो भव में पड़ा हुआ ,
भव सागर वन में जलता हूँ,

ये बिना आमंत्रण स्वर कैसा ,
अंतर में सुनता रहता हूँ?

जग हीं शेष है बचा हुआ.
चित्त के अंदर बाहर भी,

ना कोई है सत्य प्रकाशन ,
कोई तथ्य उजागर भी।

मेरे जीवन में जो कुछ भी,
अबतक देखा करता था,
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