सूरज के साथ साथ
एक सूरज निकला अलसाया सा
एक मैं जागी अलसाई सी
सूरज से जब नजरे मिली
फिर आई तरुनाई सी
मैं भागी उसके साथ
मिलाकर ताल से ताल
बड़ा नख़रीला है वो
देखो कभी झुलसाए
कभी तरसाए और कभी
शरमा कर बादलों में छुप जाए
दिन भर ऐसे ही खेलता रहता
उगता चलता चमकता और
बादल के साए में छिपता फिरता
शाम होते होते थक कर सो जाता
और मैं भी मूंद लेती थकी सी आंखे
मेरा तो जीवन ही वही है
मैं एक तिनका घास का
वो देखे तो मैं हरियाऊं
मैं लहर समंदर की
वो छुए मैं सोना बन इतराऊं
वो है तो है जीवन मेरा
वो डूबे तो मैं बिखर जाऊं
उसके बिना तो सब सूना
सब अंधेरा...
श्रद्धा
© Shraddha S Sahu