ख़ामोशी
#खाली अक्स
मैं मंच हूँ, मैं मंच हूँ
कभी महफिल मिलती तो कभी तन्हाई
मैं वही मंच हूँ जिसे रौशनी से जगमगाया जाता हैँ
तो कभी अँधेरे में सुलाया जाता हैँ
आज मुझे सजाया गया था रंगबिरंगी लड़ियो से,
कागज़ के फूलों से, मेरे हमदर्द साथी कुर्सी टेबल
माइक और दीवारें खुशी से फूली नहीं समा रही थी |
चारों और चहलकदमी हो रही थी |
मासूम से बच्चों की हंसी सुन कर
हम थोड़े जज़्बाती हो गये!
बच्चों की टोली अपना करतब दिखा रही थी |
यूँ तो हमेशा अंधेरा रहता था पर आज हॉल
जगमगा रहा था |
फंक्शन खत्म हुआ तो पंखो ने रोना शुरू किया
इतने दिन बाद तो चले थे, कुर्सी, मेज दीवारों पे
टंगे पोस्टर सब के चेहरे उतर गये, अब से फिर वही सुनापन, वही गहरा सन्नटा, घोर अंधेरा,
इतनी तन्हाई की बच्चों की अठखेलिया
सुनने को तरस जाते हैँ
और वो हमारी गमगीन आवाज़ नहीं
सुन पाते
हाँ मैं वही मंच हूँ
जहाँ रौनके लगी थी
और अब गहरी ख़ामोशी हैँ...|
© shweta Singh
मैं मंच हूँ, मैं मंच हूँ
कभी महफिल मिलती तो कभी तन्हाई
मैं वही मंच हूँ जिसे रौशनी से जगमगाया जाता हैँ
तो कभी अँधेरे में सुलाया जाता हैँ
आज मुझे सजाया गया था रंगबिरंगी लड़ियो से,
कागज़ के फूलों से, मेरे हमदर्द साथी कुर्सी टेबल
माइक और दीवारें खुशी से फूली नहीं समा रही थी |
चारों और चहलकदमी हो रही थी |
मासूम से बच्चों की हंसी सुन कर
हम थोड़े जज़्बाती हो गये!
बच्चों की टोली अपना करतब दिखा रही थी |
यूँ तो हमेशा अंधेरा रहता था पर आज हॉल
जगमगा रहा था |
फंक्शन खत्म हुआ तो पंखो ने रोना शुरू किया
इतने दिन बाद तो चले थे, कुर्सी, मेज दीवारों पे
टंगे पोस्टर सब के चेहरे उतर गये, अब से फिर वही सुनापन, वही गहरा सन्नटा, घोर अंधेरा,
इतनी तन्हाई की बच्चों की अठखेलिया
सुनने को तरस जाते हैँ
और वो हमारी गमगीन आवाज़ नहीं
सुन पाते
हाँ मैं वही मंच हूँ
जहाँ रौनके लगी थी
और अब गहरी ख़ामोशी हैँ...|
© shweta Singh