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दुःखी हैं...! 📝
हमारी शादी को बरसों बीत गए
लोग-बाग तो
शराब पीना सीख गए
मगर हमारी पत्नी ने
चाय तक नहीं छुई
हमने ज़िद की तो वो बोली-
" चाय भी कोई चीज़ है मुई
ज़हर है ज़हर है
वो भी गिलास भर
पीने बैठते हो तो
घंटो में खत्म करते हो
भगवान जाने
कैसे हज़म करते हो
पचास बार कहा
चाय हज़मा बिगाडती है
भूख को मारती है
चालीस के हो गए
दो रोटी खाते हो
मैं ठीक खाती हूँ
तो मुझे चिढ़ाते हो
क्या इसलिए
पंचो के सामने प्रतिज्ञा की थी
हमारे बाप ने
गाय समझकर दी थी।"

हम बैलों की तरह
चुपचाप खड़े थे
दुम हिलाकर बोले-
"चाय नहीं तो दूध ही पिया करो
सबेरे-सबेरे कुछ तो लिया करो।"
वे बोलीं-"दूध!
चाय तो रो-रो कर बनती है
आधी दूध
और आधी, पानी में छनती है
फिल हैं
तुम्हारे दूध की भूखी नहीं हूँ
गाँव की हूँ
गाय और भैसों के बीच में रही हूँ
फिर कभी चाय की मत कहना
हरग़िज़ नहीं पिउँगी
अगर अपनी पर आ गई
तो सब की बन्द कर दूंगी।"

पिछले साल...