...

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ढूंढ रहा कोई
दूर अजनबी बन कर घूम रहा कोई,
मंद मंद मुस्कान लिए अधरों पर ,
नम नज़रों से एकटक निहार रहा कोई;
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई।

जी में जीवन बनकर विहार कर रहा कोई,
शालीनता की चादर ओढ़े मुखपर,
मृदु वाणी से अंतर्मन के पट खोल रहा कोई;
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई।

अंधेरे में बनकर प्रकाश चमक रहा कोई,
कठिनाई का बोझ रखे कंधों पर,
साहस से पथ पर निर्भीक बढ़ रहा कोई;
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई।



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