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बोल अनमोल
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय। औरन को सीतल करे, आपहु सीतल होय ।।

काल करे सो आज कर, आज करै सो अब ।

पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ।।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर । पंथी को छाया नहीं. फल लागे अति दूर।।

करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान। रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान।।

विद्या धन उद्यम बिना, कहो जु पावै कौन। बिना डुलाए ना मिले, ज्यों पंखे की पौन।

तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियत न पान कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहि सुजान।।

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय । तोड़े से फिर ना जुरै, जुरै गाँठ पड़ि जाय ।।

टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सो बार। रहिमन फिरि-फिरि पोइए, टूटे मुक्ताहार ।।

अपनी पहुँच विचारि कै, करतब करिए दौर | तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर।।

रहिमत देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि । जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तरवारि।।