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वृद्ध वट और नई पौध
मैं मालिन.....
क्यारी, फुलवारी, बगीचा, हौद;
एक घना बरगद, और एक नन्ही पौध।
मांगा जिसे मन्नतों में,
मिली जो मुझे जन्नतों से;
लहलहाया था वटवृक्ष पल पल
अंकुर में जब फूटी थी कोपल।
कितने पतझड़, कितने सावन,
कुछ दुख दर्द, कुछ सुख मनभावन।
बाँटे सब आधे बैठ उस वट की गोद;
पास ही खिलखिलाई वो नन्ही पौध।
धरती की पेशानी चूमती हवाई जड़ें
जिससे लटक लिए थे कभी झोंके बड़े।
आंधी तूफान में खाए कितने थपेड़े,
मेढ़ लगा नई पौध संग थे बड़ तले खड़े।
सावन में पत्ते चमके, पतझड़ में गिरे;...