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क्यूँ फर्क छोरा और छोरी मैं ?
बेरा ना ईसा के होग्या, जो छोरा और छोरी मैं फर्क करैं स
भाई भी स डरपोक, और बाबू भी ,छोरी की इज़्ज़त त डरें स
बचपन मै मोह और जवानी मैं, क्यों डर स बेटी त
बेरा ना बोझ क्यूँ स, रामकी गाय स,अपने हिस्से का चरै स
अरे मन के होगे काले इनकी नियत खोटी होगी
अरे भूल बैठे नाते रिस्ते, घणी सोच छोटी होगी
अरे लागै स डर अपणी भाहण की इज्जत का इतना
वा भी तो किसे की भाहण होगी, जिस्तै तू बलात्कार करै स ।।
छोरियां के ना, लागै छोरां के संस्कार माड़े होगे
अरे रिस्ते नाते भूलगे सारे, इसे घणे उघाड़े होगे
अरे लागै होणा था करड़ा, उड़ै होणा भूलगे हम
अरे मां बाबू का मोह घणा होग्या, पालण मैं कितै कमी करै स।।
बेटी गांव के बाग का फूल, बेटा माली हुआ करै था
लाडो न कोई देख के ले, गांव सवाली हुआ करै था
अरे कितै हुई कमी माहर त, जो माहौल बिगड़ग्या यो
अरे जिसने होणा था रखवाला खेत का, वो ही उसै न चरै स ।।
अरे दुनिया आलों मैं भी एक बात कहणा चाहूँ सूं
अरे छोरियां न ना,इन छोरा न समझाणा चाहूँ सूं
जितना स ख्याल अपणी का, जै दूसरी का भी करलो
फेर कहेगी दुनिया शान त, बेटी मान स बेटी त ही घर भरै स ।।
© SK
#poembysk #writco