...

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प्रश्नों की लड़ी!
"क्या जोड़ी है ना!" सुनकर,
मुख लज्जा से भर जाए!

साक्षात शिव गौरा पधारे,
ऐसा सब मित्र सखा पुकारे!

जिस तरह काशी में सुकून मिले,
ठीक वैसा ही एहसास तुम्हारे संग पले!

सहसा तुम्हारे प्रश्नों की लड़ी,
समझ ना आए क्यों चंद बातें अधरों पे अड़ी!

काश कह देती कि एक तुम ही तो हो,
इतने लोगों की भीड़ में तुम ही पृथक हो!

तुमने तो प्रश्न कर लिए,
परंतु मेरे बाकी हैं!
तुम पर लिखी कविताएं ,
उनपर तुम्हारे मुस्कानों की मुहर अभी बाकी है!
© pritz