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jjj
बेशक मुझे भूल जाओ लेकिन इतना याद रहे
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जब तक तुम्हारे जिस्म ओ जिस्त में शबाब है
तब तक ही तेरे आशिकों का भीड़ है
तब तक ही उन सबके आंखों में तेरा ख़्वाब है
ये मधभरे नयन, ये उन्नत स्तन
ये दीप्त युक्त रुखसार, ये घ्राण का सुंदर मीनार
ये अनार के दाने सरीखे लाल अधर
ये सोखियों में घुला मदमस्त नजर
ये हवाओं से बातें करती काली गनेहरी जुल्फें
ये नरम कसी हंसीं पलकें
ये तुम्हारे चेहरे पे सावन की फुहार सी गिरती झीनी - झीनी अलकें
जिसे तुम अपनी अंगुलियों से ढोती हुई कानों के किनारे लाकर रखती थी एवं मुझे देख धीमे धीमे मुस्कुराती थी
और मैं तुम्हें यूं देखकर
कितना बहकताí था , चहकता था , दहकता था,
लहकता था , महकता था.. मैं क्या क्या नहीं होता था
दिन - रात , बात बेबात , कभी तन्हा, कभी तुम्हारे साथ
तुमको लेकर रंग बिरंगे - छैल छबीले हजारों सपने संजोता था
हय! मैं कितना फिदा था तुम्हारे इन अदाओं पे ,
हरदम यही मंजर चाहता था अपनी निगाहों पे
वो शाम, वो पार्क, वो बेंच और तुम्हारा सोहबत
हय ! वो तुम्हारा गुस्सा और वो मेरी शरारत
मतलब ये उन उन दिनों की बातें है ...
जब तुम मुझे जानती थी, पहचानती थी ,
पता नही क्या क्या मानती थी ...
तेरी हर अदा , रंग , तरंग , उमंग, दर्द , खुशी , रस
चाल, ढाल, हाल, सवाल, फिक्र, आह , तरस
पे जब मेरा हक हुआ करता था..
मेरे कदमों का सफर जब तेरे घर तक हुआ करता था ...
पता है वो शहर जिसे में सबसे अजीज कहा करता था ...