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खुद तुम अनमोल हो
कभी टूटती हूं कभी सवरती हूं
रोते रोते फिर हंसती भी हूं
मैं खुद से झगड़ती हूं
और खुद को समझाती भी हूं
कोई मिला ही नहीं मुझे समझने वाला
तो ढूंढा मैंने खुद में ही
अपनी दूसरी छाया
मैंने खुद को अपना मान लिया है
खुद को ही अपना प्रेम बना लिया है
अब फर्क नहीं पड़ता
किसी के होने या ना होने से
मैं खुद को इस काबिल बना लिया है
आस-पास कोई मुझे समझता नहीं
मैंने ढूंढा भी था कोई मुझसा
पर पता चला मुझसा
कोई इस दुनिया में है ही नहीं
भगवान ने सबको अपने लिए
अनमोल बनाया है
पर कोई इस बात को समझता ही नहीं
मैंने सोचते सोचते खुद को ढूंढा है
कभी तुम भी खुद को सोच कर देखना
__पल्लवी......
रोते रोते फिर हंसती भी हूं
मैं खुद से झगड़ती हूं
और खुद को समझाती भी हूं
कोई मिला ही नहीं मुझे समझने वाला
तो ढूंढा मैंने खुद में ही
अपनी दूसरी छाया
मैंने खुद को अपना मान लिया है
खुद को ही अपना प्रेम बना लिया है
अब फर्क नहीं पड़ता
किसी के होने या ना होने से
मैं खुद को इस काबिल बना लिया है
आस-पास कोई मुझे समझता नहीं
मैंने ढूंढा भी था कोई मुझसा
पर पता चला मुझसा
कोई इस दुनिया में है ही नहीं
भगवान ने सबको अपने लिए
अनमोल बनाया है
पर कोई इस बात को समझता ही नहीं
मैंने सोचते सोचते खुद को ढूंढा है
कभी तुम भी खुद को सोच कर देखना
__पल्लवी......
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