खुद तुम अनमोल हो
कभी टूटती हूं कभी सवरती हूं
रोते रोते फिर हंसती भी हूं
मैं खुद से झगड़ती हूं
और खुद को समझाती भी हूं
कोई मिला ही नहीं मुझे समझने वाला
तो ढूंढा मैंने खुद में ही
अपनी दूसरी छाया
मैंने खुद को अपना मान लिया है
खुद को ही अपना...
रोते रोते फिर हंसती भी हूं
मैं खुद से झगड़ती हूं
और खुद को समझाती भी हूं
कोई मिला ही नहीं मुझे समझने वाला
तो ढूंढा मैंने खुद में ही
अपनी दूसरी छाया
मैंने खुद को अपना मान लिया है
खुद को ही अपना...