आवारा हूँ
जाना है मैंने खुद को जब से
पाया है अकेला खुद को तब से
चाहा है मैंने तुझको जब से
तड़पा हूँ मैं हमेशा ही तब से
उम्मीदों के आशियाने बनाए मैंने जब से
बेघर सा हो गया हूँ मैं तब से
इज्ज़त के बिस्तर लगाए मैंने जब से
बेज्जती के कांटों पर सोया हूँ मैं तब से
मधुरता की शहद ली मैंने जब से
कटुता के निवाले निगल रहा मैं तब से
प्यार की प्यास बुझाई मैंने तेरी जब से
नफरत की आग में जल रहा मैं तब से
© आशिष रतन
पाया है अकेला खुद को तब से
चाहा है मैंने तुझको जब से
तड़पा हूँ मैं हमेशा ही तब से
उम्मीदों के आशियाने बनाए मैंने जब से
बेघर सा हो गया हूँ मैं तब से
इज्ज़त के बिस्तर लगाए मैंने जब से
बेज्जती के कांटों पर सोया हूँ मैं तब से
मधुरता की शहद ली मैंने जब से
कटुता के निवाले निगल रहा मैं तब से
प्यार की प्यास बुझाई मैंने तेरी जब से
नफरत की आग में जल रहा मैं तब से
© आशिष रतन